लम्हों से सदियों की नज़ाक़त__


वक़्त बेवक़्त, वक़्त की आफ़त, साथ ईशरत का रहे सलामत
चलता रहा एक अरसे से मैं; उम्मीद मिले, सहसा रुक पाऊँ__
लम्हों से सदियों की नज़ाक़त, मेरे कुछ अपनों की ईबादत
इन रिश्तों की नायाब ईमारत, इसका मैं सिकन्दर बन जाऊँ__
मौला मेरे, ऐसा कुछ कर, माजी को ज़ानिब कर पाऊँ
जवाँ-जवाँ महफ़िल हो जाये, फिर से मैं जिंदा हो जाऊँ__
©#Lines_By_Kw
ईशरत--Pleasure/Happiness
नायाब--Unobtainable
नज़ाक़त-- Nicety
माजी-- Former
ज़ानिब--Direction/Present
जवाँ-- Young



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